गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

सरकारी उपेक्षा के कारण कबीर के निर्वाण स्थल का विकास अधूरा


उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर जिले के मगहर में संत कबीर के निर्वाण स्थल मगहर को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किए जाने की आवश्यकता व्यक्त करने के बावजूद राज्य सरकार से कोई सहयोग नहीं मिलने से इसका विकास कार्य ठप्प पड़ गया है। 
मगहर के सदगुरु कबीर संस्थान के महंत विचार दास ने बताया कि डॉ. कलाम ने 11 अगस्त 2003 में मगहर के दौरे के समय इस स्थान को अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थल बनाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए विश्व शांति के लिए संत कबीर के उपदेशों के व्यापक प्रचार-प्रसार के वास्ते यहां एक शोध केन्द्र, पुस्तकालय और संग्रहालय की स्थापना की बात कही थी। उनके प्रयास से समाधि स्थल और मजार स्थल को विकसित करने के लिए एक-एक लाख रुपए मिले थे लेकिन उसके बाद राज्य सरकार से अन्य कार्यों के लिए सहयोग नहीं मिलने के कारण इस स्थान का विकास नहीं हो पा रहा है। 

उन्होंने बताया कि संत कबीर के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने और कबीर साहित्य के प्रकाशन के उद्देश्य से 1993 में तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने संत कबीर शोध संस्थान की स्थापना कराई थी। मगहर में हर साल तीन बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिनमें 12-16 जनवरी तक मगहर महोत्सव और कबीर मेला, माघ शुक्ल एकादशी को तीन दिवसीय कबीर निर्वाण दिवस समारोह और कबीर जयंती समारोह के अंतर्गत चलाए जाने वाले अनेक कार्यक्रम शामिल हैं। मगहर महोत्सव और कबीर मेला में संगोष्ठी, परिचर्चाएं तथा चित्र एवं पुस्तक प्रदर्शनी के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। कबीर जयंती समारोह में अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से संत कबीर के संदेशों का प्रचार-प्रसार किया जाता है। 

महंत विचार दास ने बताया कि इनके अलावा कबीर मठ सात प्रमुख गतिविधियां संचालित करता है जिनमें संगीत, सत्संग एवं साधना, कबीर साहित्य का प्रचार-प्रसार, शोध साहित्य, कबीर बाल मंदिर संत आश्रम एवं गोसेवा तथा वृद्धाश्रम और यात्रियों की आवासीय व्यवस्था शामिल हैं।
मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित होने वाले मगहर महोत्सव का इतिहास काफी पुराना है। पहले इस दिन एक दिन का मेला लगता था। सन 1932 में तत्कालीन कमिश्नर एस.सी.राबर्ट ने मगहर के धनपति स्वर्गीय प्रियाशरण सिंह उर्फ झिनकू बाबू के सहयोग से यहां मेले का आयोजन कराया था। राबर्ट जब तक कमिश्नर रहे तब तक वह हर साल इस मेले में सपरिवार भाग लेते रहे। उसके बाद 1955 से 1957 तक लगातार तीन साल भव्य मेलों का आयोजन किया गया। सन 1987 में इस मेले का स्वरूप बदलने का प्रयास शुरु किया गया और 1989 से यह महोत्सव सात दिन और फिर पांच दिन का हो गया। इस महोत्सव में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, विचार गोष्ठी, कबीर दरबार, कव्वाली, सत्संग, भजन, कीर्तन तथा अखिल भारतीय कवि सम्मेलन और मुशायरे आयोजित किए जाते हैं। 
मगहर का नाम कैसे पड़ा इस बारे में कई जनश्रुतियां हैं जिनमें एक यह है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी में भारतीय स्थलों के भ्रमण के लिए आए बौद्ध भिक्षुओं को इस स्थान पर घने वनमार्ग पर लूट-हर लिया जाता था। यही मार्गहार शब्द कालान्तर में अपभ्रंश होकर मगहर बन गया। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार मगधराज अजातशत्रु ने बद्रीनाथ जाते समय इसी रास्ते पर पड़ाव डाला और अस्वस्थ होने के कारण कई दिन तक यहां विश्राम किया जिससे उन्हें स्वास्थ्य लाभ हुआ और शांति मिली। तब मगधराज ने इस स्थान को मगधहर बताया। इस शब्द का मगध बाद में मगह हो गया और यह स्थान मगहर कहा जाने लगा। 
कबीरपंथियों और महात्माओं ने मगहर शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है- मर्ग यानी रास्ता और हर यानी ज्ञान अर्थात ज्ञान प्राप्ति का रास्ता। यह व्युत्पत्ति अधिक सार्थक लगती है क्योंकि यदि देश को साम्प्रदायिक एकता के सूत्र में बांधना है तो इसी स्थान से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। 
गोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के समीप बस्ती से 43 किलोमीटर और गोरखपुर से 27 किलोमीटर दूरी पर स्थित मगहर 1865 तक गोरखपुर जिले का एक गांव था। बाद में यह बस्ती जिले में शामिल हो गया। तत्कालीन और वर्तमान मुख्यमंत्री मायावती ने सितम्बर 1997 में बस्ती जिले के कुछ भागों को अलग करके संत कबीर नगर नाम से नए जिले के सृजन की घोषणा की जिनमें मगहर भी था। उसी दिन मायावती ने संत कबीर दास की कांस्य प्रतिमा का अनावरण भी किया।
 

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